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कैसे हो संतोष

मन अस्थिर करता मुझे, कैसे हो संतोष,
खाली खाली आ रहा, खुद ही खुद पर रोष,
खुद ही खुद पर रोष, नहीं संतोष मुझे है,
सौ ठोकर के बाद, नहीं फिर होश मुझे है,
कहे लेखनी मान, बात को यंत्र है तन,
चला रहा है उसे, सौ तरह से मेरा मन।

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