बातें बताओ खुल कर
क्यों इस तरह हो रूठे
कहते थे प्यार दूँगा
अब बन गए हो झूठे।
बिन बात मुँह फुलाकर
चुपचाप क्यों हो बैठे,
क्या कह दिया है हमने
जो इस तरह हो ऐंठे।
लगता है पड़ गए हैं
कुछ नफ़रतों के छींटे,
कसमें थीं प्यार की जो
वो भूल कर यूँ बैठे।
आशा थी जिन फलों से
वे बन रहे हैं खट्टे
छोड़ो ये राह आओ
दो बोल बोलो मीठे।