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क्यों

रक्त रंग जब एक सा है
है सूरत सबकी एक सी
फिर क्यों बाँटी है मानवता ,क्यों सरहद की लकीरें खींची हैं
क्या ईश्वर ने बनाया है जाति-पाति
यह सब मानव की करनी है
एक ही धर्म है दुनियां में
भिन्न भिन्न अज्ञानियों ने मानी है
क्यों द्वेष ,अहिंसा और नफरत से
ये प्यार की दुनिया बाँटी है
आज इतिहास चित्कार रहा
हमें लिख दो इतिहासकार सही सही
हम सब हैं भारत देश के वासी
फिर क्यूँ किसी धर्म के अनुयायी हैं
सर्वधर्म आदर भाव बना रहे
हम सब भाई भाई हैं
किसी दलित को छू लेने से
धर्म भ्रष्ट नहीं होता है
ऐसे विचारों के कारण मंदिर में ईश्वर रोता है
भ्रष्टाचार वह अंधकूप है ,जिसमें शोषण जल होता है
इसी कारण इस धरती पर, दुर्बल हीन आज तक रोता है
नहीं दिखता कि कहीं भी ,प्यार आदर संस्कार है
क्यों चहुँ ओर फैला व्यभिचार है
क्यों झोपड़ियों से महलों तक , घनघोर अँधेरा फैला है
कुंठित हैं सब जन जन ,सूरज भी मटमैला है
मन्दिर मस्जिद खूब बने हैं ,गिरजा गुरुद्वारों की कमी नहीं
क्यों मानव ह्रदय स्थल में ,परोपकार की जगह नहीं
क्यों सांस यहाँ टूटे सपनों सी ,आँखों नींद न आती है
वेदना की परिभाषा इतनी
कोई छाँव नहीं भाती है …..

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