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खुद की जंग

ना जाने कितनी निर्भया
ना जाने, कैसी मर्दानगी
बर्बरता की हदें लांघी
जुबां तक काटी
धरती भी नहीं कांपी
कानून को कुछ ना समझे
कौन इन्हे इन्सान कहे
जानवर भी इनसे हारे
भगवान् भी नहीं आए
बस ,अब बहुत हुया
नारी को ही जगना होगा
सितम का सामना करना होगा
जंग को खुद ही लड़ना होगा
जंग को खुद ही लड़ना होगा।

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