भीड़ भरी इस तन्हाई में
जीना
एक अलग नज़रिए के साथ
कितना
जरुरी बन गया
दिन–ब–दिन
बदलता
यहां हर मुकाम
मुझे
ये जाहिर कर गया।
शोर भरे सन्नाटे में
कैसे
मैं ढ़ल गाया
ये तो
बस मैं ही जानता हूँ
लेकिन
खुद को खोने के डर में
इस
भीड़ भरी तन्हाई में
जब से मैं
खुद से मिल गया
तब से मैं
खुद को
बड़ा खुशनसीब मानता हूँ।
– कुमार बन्टी