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“खुद पे कुछ इस तरह से वार किया मैंने”

खुद पे कुछ इस तरह से वार किया मैंने।
तेरा न आना तय था इंतज़ार किया मैंने।।
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जब थी फूलों सी फ़ितरत तो तोड़ा सबने।
अब तोहमतें है खुद को ख़ार किया मैंने।।
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मौसम मेरे मुताबिक़ कहाँ होने वाला था।
नाहक ही हवाओं पे इख़्तियार किया मैंने।।
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मुश्किले आती हैं दरिया की राह में अक्सर।
जब मुझकों बहना था सब पार किया मैंने।।
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वहम था की हम नहीं कहतें हाल ए दिल।
जबकि लिख के सब अख़बार किया मैंने।।
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जिसनें किया था बारहा नज़र अंदाज़ मुझे।
उसी का इल्ज़ाम उसे दरकिनार किया मैंने।।
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