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खुशियाँ तो

खुशियाँ तो मन की
उथल-पुथल से
सीधी जुड़ी हुई हैं,
मन में यदि संतुष्टि है
तब हम जरा सी बात पर
खुश हो सकते हैं,
मजे में रह सकते हैं।
मगर मन अनियंत्रित है,
और संघर्ष का माद्दा नहीं है
या संघर्ष कर पाने की
परिस्थिति नहीं है ,
तब हम न छोटी चीजों में
खुश रह पाते हैं,
न बड़ी चीजों तक पहुँच पाते हैं,
बड़ी चीज और बड़ी चीज
बड़ी से बड़ी चीज
बड़ी का कोई अंत नहीं
अस्थिर लालसा
अस्थिर खुशी।
प्रयास करना अनुचित नहीं है
लेकिन मन को विचलित कर
बेचैन रहना और
छोटी-छोटी खुशियों को
नजरअंदाज करना उचित नहीं है।
छोटी खुशियों में खुश नहीं रहे
व बड़ी खुशी आने तक
खुद नहीं रहे,
तब पाये तो क्या पाये
जब क्षण नहीं रहे।
—– डॉ0 सतीश चन्द्र पाण्डेय

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