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गजल- भूख के मारे हुये है |

गजल- भूख के मारे हुये है |
भूख ले आई शहर हम भूख के मारे हुये है |
छोड़ चले शहर को हम भूख के सताये हुये है |
कोरोना के कहर ने बदल दी है जिंदगी मेरी |
वाइरस से पहले भूख की आग जलाए हुये है |
बड़े बेआबरू होकर निकले सफर जरिया नहीं |
जाये तो जाये किधर हम मंजिल भुलाए हुये है|
कटता नहीं ये सफर हुकूमत का पहरा बहुत है |
चलना हुआ दुशवार नहीं दिनो से खाये हुये है |
थम जाएगी कब सांस गाँव भी अपना दूर है |
पैदल सही दिल उम्मीद मंजिल जगाए हुये है |
भूख लाई थी शहर भूख लौटा ले जा रही हमे |
पास दाना न पानी जेब सुखी रोटी दबाये हुये है |
कब मिल पाएंगे हम अपनो से हमे क्या मालूम |
लड़खड़ाते कदमो हम उधर नजरे गड़ाए हुये है |
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286

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