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गिरेबां

गिरेबां अपनी जब भी झांकता मैं।
हर बार पाता, कहाँ तू और कहाँ मैं।
आईना मैं भी देखता हूँ, वाकिफ़ हूँ,
और भी बेहतर हैं ‘देव’ तुझसे जहाँ में।

देवेश साखरे ‘देव’

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