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गीत, गज़लें लिख रही हूँ..

गीत, गज़लें लिख रही हूँ
कुछ अलग ही दिख रही हूँ
होंठों पर हैं लफ्ज अटके
मन ही मन में पिस रही हूँ
आ गई अब शाम, दिन की
दोपहर ही लग रही हूँ
गुनगुनी-सी देह है और
ठण्डी-ठण्डी रात है
नींद है भटकी हुई सी
सिमटी-सिमटी लग रही हूँ
कुछ अलग ही दिख रही हूँ..

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