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गुनगुनी धूप सी तुम

बढ़ रही ठंड में
गुनगुनी धूप सी तुम
जिन्दगी में सुगंध फैलाती
मनोहर धूप सी तुम।
मुस्कुराहट इस तरह की
नाजुक सी,
ठोस के साथ में घुलती
जरा सा भावुक सी।
कभी आलिम
कभी हो पागल सी,
नेह से पूर्ण
ढकते आँचल सी।
किसी झरने की
प्यारी कल कल सी
भार्या ही नहीं तुम तो
हो खुशियाँ पल-पल की।
—–@भार्या।
— सतीश चंद्र पाण्डेय

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