गुरु – महिमा
यह रचना है ,
गुरु-देव की महिमा का गुनगान ,
वो ख़ुद के चित् में है अन्तहीन ,
जिनकी परिभाषा है असीम ,
ऋषि की विशिष्टताओं का पैग़ाम
जो देकर हमको शिक्षा ,
हमारा ज्ञान ही ना बड़ाए ,हमें ही बड़ा जाए
पड़ा कर पाठ हमको,
जानकारी ही ना दे जाए ,असलीयत उनकी सिखा जाए
सिखा शब्दों के मायने
मत्लब् ही ना समझा जाए ,उन मायनो से हमे बना जाए
दिखा ज़िन्दगी की राहे ,
पथ-परिदर्शत ही ना कर जाए, जीवन रोशनी से भर जाए I
किताबी अर्थो को बता ,
सिर्फ़ विचार ही ना दे जाये, उन विचारों से हमे बदल जाये
लूटा अपने ज्ञान का सागर ,
हमारा रुतबा ही ना बड़ा जाये, हमे सच की राह् में चला जाए
दिखा धर्म की साँची रहें ,
यूई इस जन्म को ही नहीं, जन्मों की राह् मुखर कर जाए
…… यूई