गुलाबी धूप की,
ओढ़ चुनरिया
देखो सर्दी आई है
ठंडा कोहरा आसमान में,
बादल भी संग लाई है
पर्वतों का सा,मौसम हो जाता
चाय सुहाती है हरदम
बिन शॉल और बिन स्वेटर तो,
निकला सा जाता है दम
ओस की बूंदें गिरे निरन्तर,
पूरी-पूरी रात
ठंडा-ठंडा पानी आता,
जम जाते हैं हाथ
फ़िर भी मन को भाए सर्दी,
कितनी मुझे सुहाए सर्दी
*****✍️गीता