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गूंगी लड़की

गूंगी लड़की
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रात्रि के अंधकार में,
नहा जाती वह दूधिया प्रकाश से।

जब उसकी कहानी के
पसंदीदा किरदार
उसको घेरे खड़े होते।

बेबाकी से वो दिखा देती
अपने दिल में उठे
ज्वारभाटो के निशान
कह देती वो बात
जो शायद जुबां से ना कह पाती।

हृदय के बंद कमरे में
बजते संगीत से उठती
स्वर लहरियां
छिड़ते तार।

अंदर था कोलाहल
बाहर मौन।

गूंगी लड़की के समान थी y
जो सिर्फ
इशारों में ही
बात समझ जाती।

कठपुतली सी
नाचती रहती चारो ओर।

खोल देती ताले लगे द्वार
और प्रिय का करती इंतज़ार.
ख्वाबों में हाथ पकड़
आलिंगन में बंधी
चल पड़ती उस राह पर
जहां वो जाना चाहती थी
हर बार।

निमिषा सिंघल

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