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घिस-घिस

घिस-घिस कर चप्पल बना, जीवन का संघर्ष,
खींच रहा पीछे मुझे, कैसे हो उत्कर्ष,
कैसे हो उत्कर्ष, चुभ रहे कंटक पथ में,
तुझे कहाँ महसूस, बात तू बैठा रथ में,
कहे लेखनी चली, जिन्दगी यूँ ही पिस-पिस,
बेबसी-मजबूरी, में यह जा रही घिस घिस।

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