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जब सुनता हूँ
कभी दिल की
ज़ेहन ये कहता है
संभल कमबख़्त
किस उलझन में
तू उलझा रहता है
शाम ढले सर्द हवा
कुछ सहमी सी
ख़ामोश फ़िज़ा।
शब-ए-तन्हाई
में दिल पर
कुहासा रहता है।।
क़ब्ल में कब हुई
गुफ़्तगू उससे
कुछ याद नही।
वो अब भी मुझसे
न जाने क्यूँ
खफ़ा सा रहता है।।
क़ायम कब तलक
रहेंगे सिलसिले
अदावत के।
यक़ीनन आएगा
वो लौट कर दिल
ये मेरा कहता है।।
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@deovrat 08.10.2019