Site icon Saavan

चलना संभल कर यहां जर्रे जर्रे में है धोखा

चलना संभल कर यहां जर्रे जर्रे में है धोखा।
अब सांसे भी सांसों को देता रहा है धोखा।

यूं जिंदगी को न कर इस कदर रुसवा यहां
हर गली हर चौराहे पर पसरा है धोखा।

वो सियासी नेता हो या हो कोई नन्हा बच्चा
हर इंसान के रग-रग में छिपा है धोखा ।

पानी की बुलबुले सी रह गई है जिंदगी,यहां
जिन्दा खुद जिन्दगी को देता रहा है धोखा ।

रात काली उजियारे सा महफिल है “योगेंद्र”
दिन निकला तो है,पर उजाले का है धोखा।

योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा,छ०ग०

Exit mobile version