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चल दिये क्यों फेर कर मुँह

चल दिये क्यों फेर कर मुँह
राह में हम भी खड़े थे,
आपसे मिल लेंगे दो पल
चाह में हम भी खड़े थे।
मुस्कुराकर आपने
गैरों में खुशियों को लुटाया,
हम रहे तन्हा, गमों में
अश्रुपथ भीतर बनाया।

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