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चेहरे

एक जैसे हो गए हैं चेहरे सारे,
मेरी आँखों से कहीं खो गया है चेहरा तेरा,

मुद्दते बीत गयी हैं सपना तुम्हारा देखे,
जागता रहता है हर रोज बिस्तर पर तकिया मेरा,

फ़हरिस्त होगी मरने वालों की कातिलों के पास मगर,
मेरे जिस्म ही नहीं रूह पर भी हो गया है इख़्तियार तेरा,

तेरी ही जुस्तजू में लगा हूँ मैं हर पल,
सच ये के अब हद से जादा हो गया है इंतज़ार तेरा॥

राही (अंजाना)

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