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छंद कुण्डली कर्म

खाने सोने में रहे, जीवन लोग गंवाय
उन्नति देखी और की, सिर धुन धुन पछिताय
सिर धुन धुन पछिताय, काम कुछ करिए ऎसा
जगत करे सम्मान और पाए भी पैसा
कह पाठक कविराय, कर्म बिन जीवन सूना
जग यह करम प्रधान, धर्म से सुख ले दूना

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