नि:संतान थे राजा प्रियंवद,
पुत्र-प्राप्ति हेतु किया हवन
प्रशाद की खीर खाकर, रानी मालिनी ने
दिया एक पुत्र को जनम
किन्तु पुत्र जीवित ना था
राजा ले जा रहे थे
पुत्र का अंतिम संस्कार करने
राजा थे शोकाकुल ज्यादा
प्राण त्यागने को आमादा
प्रकट हुई तब एक देव-कन्या,
नाम था उनका देवसेना
बोली, पूजा-व्रत करो मेरा राजन्
होगा तुम्हें प्राप्त पुत्र-रत्न
राजा ने उनका कहा माना,
कार्तिक शुक्ल की षष्टी थी वो
आई थी छठ माता,
राजा को पुत्र मिला था
तभी से ये व्रत-त्यौहार मनाया जाता ।।
*****✍️गीता