सुनते थे गहन मुश्किलों में
साया भी छोड़ देता है साथ
रात के अँधेरे स्याह साय में
मुड़ देखा ना था साया कहीं
जब ख़ुद के होने का शक़ हुआ
दाएँ हाथ से पकड़ बाईं हथेली को
ख़ुद के होने का तो होंसला हुआ
…… यूई
सुनते थे गहन मुश्किलों में
साया भी छोड़ देता है साथ
रात के अँधेरे स्याह साय में
मुड़ देखा ना था साया कहीं
जब ख़ुद के होने का शक़ हुआ
दाएँ हाथ से पकड़ बाईं हथेली को
ख़ुद के होने का तो होंसला हुआ
…… यूई