जब सोचा इक दफ़ा जिन्द्गी के बारे मे Ajay Nawal 9 years ago जब सोचा इक दफ़ा जिन्द्गी के बारे मे किस कदर बसर हुई जिंदगी मेरी क्यों भटकता रहा जिंदगीभर मुसाफ़िर बनकर ज्वालामुखी सा जलता रहा कभी लावे सा पिघलता रहा आसमां को छुने की आरजू में पतगं सा हर बार कटता रहा हाथों की लकीरों से लडता था कभी में अब उन लकीरों मे ही ढ़लता रहा