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जागो हे भरतवंशी

जागो हे भरतवंशी अलसाने की बेर नहीं ।
सहा सबकी साज़िशों को,करना है अब देर नहीं ।।
शालीनता की जिनको कदर नहीं,विष के दाँत छिपाये है
मौकापरस्त फितरत है जिनके,क्यू उनसे हम घबराये है
फ़ौलाद बन उत्तर दो इनको,पंचशील की बेर नहीं
जागो हे भरत——
सामने शत्रु है वो,वृतासुर सी प्रवृत्ति जिनकी रही है
हिन्द के सह से वीटो की छङी,जिनके हाथों में पङी है
दधीची बन, भेद उनको,बुद्ध की अभी दरकार नहीं
जागो हे भरत——-
चुपचाप तुम्हारी मनमानी को करते रहे स्वीकार जो
हिंद -चीन भाई-भाई कह,कर ना सके प्रतिकार जो
तेरी कायराना हरकतें सहने को, अब हम तैयार नहीं
जागो हे भरत ——
जो है उसीसे क्यू न अपना आशियाना सजाए हम
अमेरिका कभी रूस से,क्यू हथियार मंगवाए हम
सँवारे एकलव्य,रामानुज,आर्यभट्ट,नागार्जुन कलाम को,
इन जैसो की हिन्द में हङताल नहीं
जागो हे भरत——
चाणक्य को देंगे सम्मान नहीं चन्द्रगुप्त कहाँ से पाएंगे
चीन कभी रूस के आगे हथियार की आश लगाएँगे
द्रोण वशिष्ठ की परम्परा,रखी हमने बरकरार नहीं
जागो हे भरत ——-
पिछङते रहेगे, उपेक्षित रहेगी जबतक,पहली शिक्षिका
कैसे बढ़े,गर्भ में ही भक्षण कर,बन बैठे, हैं जो रक्षिका
ललक शिखर छूने की,
आधी आबादी की करते हैं सम्मान नहीं
जागो हे भरत ——-
सुमन आर्या
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