जाग जा
नई रोशनी का
आभास कर,
प्रातः हो गई है,
पौधों में चमकती
ओस की बूंदें,
बता रही हैं,
किस तरह नींद में
रोया होगा
रात भर तू।
जमाना तेरे आंसू
पोछे न पोछे
लेकिन सूरज सुखा देगा
तेरी ओस की बूंदें ।
प्रातः हो गई है
जो भुला देगी
तेरी दर्द भरी नींदें।
जो आंखों में आकर भी
अपनी न हो सकी नींदें।
कभी सुख के पाले में
कभी दुख के पाले में
उछलती रही रात भर गेंदें।
अब प्रातः हो गई है
अंधेरा चला गया है,
अब जाग जा
नई रोशनी का
आभास कर।