जाग जा
जाग जा
नई रोशनी का
आभास कर,
प्रातः हो गई है,
पौधों में चमकती
ओस की बूंदें,
बता रही हैं,
किस तरह नींद में
रोया होगा
रात भर तू।
जमाना तेरे आंसू
पोछे न पोछे
लेकिन सूरज सुखा देगा
तेरी ओस की बूंदें ।
प्रातः हो गई है
जो भुला देगी
तेरी दर्द भरी नींदें।
जो आंखों में आकर भी
अपनी न हो सकी नींदें।
कभी सुख के पाले में
कभी दुख के पाले में
उछलती रही रात भर गेंदें।
अब प्रातः हो गई है
अंधेरा चला गया है,
अब जाग जा
नई रोशनी का
आभास कर।
Sunder
सादर धन्यवाद जी
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ
धन्यवाद जी
शानदार लेखन
थैंक्स
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति
सादर धन्यवाद
खूबसूरत
सादर धन्यवाद
Nice
सादर धन्यवाद
बेहतर लेखन का नमूना
बहुत बहुत धन्यवाद जी
Very Nice
बहुत बहुत धन्यवाद
बेहतरीन
Thanks
रात्रि के बाद प्रातः काल का यथार्थ चित्रण
दुख के बाद सुख मिलने की आशा करती हुई बहुत सुंदर रचना है ।
कवि की पारखी नजर का अभिवादन, समीक्षा हेतु सादर आभार