जिंदगी में मेरी एक अपनापन है आज़कल
जेब में भले ही गोपाल ठन–ठन है आज़कल।
साथ देने को कोई दूसरा साथ में नहीं
बस अपना बेचारा साफ मन है आज़कल।
तुम जब सुनोगे तभी तो जानोगे कि
मेरी बात में कितना वज़न है आज़कल।
मरने से पहले ही मौत को देखने के बाद
जिंदगी को जिंदा कर रहा जीवन है आज़कल।
बेफिक्र ज़माने की करतूतें ‘बंदा’ बता तो दे
लेकिन फिक्र उसी ज़माने की अडचन है आज़कल।
– कुमार बन्टी