जीवन की गाडी
चले निरंतर
पहियों की पकड़
सड़क से हो।
कोई फिसले नहीं कहीं पर ,
पहचान सुपथ पर
पकड़ से हो।
ह्रदय हो तो
हो प्रेम भरा
जिसकी पहचान
धड़क से हो।
आवाज उठानी हो
सच की तो
सच्ची में वह
कड़क सी हो।
कलम उठे यदि लिखने को
तो धार कलम की
खड़क सी हो।
जीवन की गाडी
चले निरंतर
पहियों की पकड़
सड़क से हो।
—– डॉ. सतीश पांडेय