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जि़न्दगी की ओर

मैं अर्धविक्षिप्त अवस्था में थी,
निकाल कर ला रही हूँ धीरे-धीरे स्वयं को ।
मेरे पाॅंव में डाली हुई आपकी नेह की डोर,
लेकर आ रही है मुझे जिंदगी की ओर।
आपके नेह का ऑंचल सदा,
करता रहा रक्षा मेरी।
भेजी थी जो आपने मेरे लिए दुआएँ सभी,
वो मिल रही हैं मुझ को,
दे रही हैं बल वापिस लौटने का।
हाथ बढ़ाकर छू लूॅंगी जिंदगी को,
यह वादा है मेरा।
दो कदम कठिन है मगर,
मैं करूॅंगी पार, धीरे ही सही,
आऊंगी लौटकर ,
आपकी नेह की पकड़ कर डोर,
ऐ, जिंदगी तेरी ओर
ऐ, रौशनी तेरी ओर॥
_____✍गीता

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