जीवन की आड़ी-सीधी रेखाएं
बनती और बिगड़ती रहती हैं…
देख के कर्मों की गति ये
कभी हँसतीं तो कभी रुवासी रहती हैं…
पथ पर अपने चलने को आतुर
रहती हैं
समय की गति से सौदेबाजी करती रहती हैं…
जीवन की आड़ी-सीधी रेखाएं
बनती और बिगड़ती रहती हैं….
जीवन की आड़ी-सीधी रेखाएं
बनती और बिगड़ती रहती हैं…
देख के कर्मों की गति ये
कभी हँसतीं तो कभी रुवासी रहती हैं…
पथ पर अपने चलने को आतुर
रहती हैं
समय की गति से सौदेबाजी करती रहती हैं…
जीवन की आड़ी-सीधी रेखाएं
बनती और बिगड़ती रहती हैं….