टूटते क्यों नहीं
सत्ता के
पाषाण ह्रदय तटबंध
उन आँसुओं के सैलाब से
जो बहते है गुमसुम
बच्चों की खाली थाली देखकर
जब चीख उठते हैं पैरों के
बड़े बड़े लहूलुहान चीरे
फटे कंधे साहस दिलाते
फिर
कल की उम्मीद में सो जाते है
पीकर
उन्हीं अश्रुओं को …
टूटते क्यों नहीं
सत्ता के
पाषाण ह्रदय तटबंध
उन आँसुओं के सैलाब से
जो बहते है गुमसुम
बच्चों की खाली थाली देखकर
जब चीख उठते हैं पैरों के
बड़े बड़े लहूलुहान चीरे
फटे कंधे साहस दिलाते
फिर
कल की उम्मीद में सो जाते है
पीकर
उन्हीं अश्रुओं को …