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“ढ़ूढ़ता हूँ”

ना  जाने  किस भँवर में हूँ इक ठिकाना ढ़ूढ़ता हूँ,
जिन्दगी  जी लूँ  ज़रा  सा बस  फ़साना ढ़ूढ़ता हूँ,
प्यार  की  कश्ती  में लगता डूबता ही जा रहा हूँ,
मौत से मिल जाऊँ इक दिन बस बहाना ढ़ूढ़ता हूँ

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