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तप रही है धरा

तप रही है धरा,
तप रहा गगन है l
तपा-तपा सा,
मेरा भी मन है l
बीतता ही नहीं है,
आया यह कैसा मौसम है l
प्रभात का कंचन भानु भी,
दे रहा है तपन l
एक पवन के शीतल झोंके को,
तरस गया है मेरा मन॥
_____✍गीता

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