तरप

कल भी तेरी “चाहत “थी;
आज भी तेरी चाहत है–
. तु तो शिर्फ प्यार रूपी नाटक की।
प्यारा मे मजबूरियाँ किसको ना होता
ये मजबुरी रूपी खंजर चला दी मेरे शीने मे।।
कल”” तरपता”” रहा;; आज भी तरप रहा हूँ।
शिर्फ अन्तर इतना है की कल प्यार के लिए तरप रहा;
आज शीने मे लगे खंजर के लिए तरप रहा हूँ ।

jyoti

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