‘तलाशती हूँ मैं जमीं अपनी’ Pragya 3 years ago जिम्मेदारी के बोझ तले दबा रहता है जीवन जाने किन खयालों में खोया रहता है जीवन उठकर तलाशती हूँ मैं जमीं अपनी आसमां जाने क्या ढूंढा करता है जीवन…