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ताबीर

महज़ ख़्वाब देखने से उसकी ताबीर नहीं होती

ज़िन्दगी हादसों की मोहताज़ हुआ करती है ..

बहुत कुछ दे कर, एक झटके में छीन लेती है

कभी कभी बड़ी बेरहम हुआ करती है …

नहीं चलता है किसी का बस इस पर

ये सिर्फ अपनी धुन में रहा करती है ..

न इतराने देगी तुम्हें ये, अपनी शख्सियत पे

बड़े बड़ों को घुटनों पे ला खड़ा करती है ….

खुद को सिपहसलार समझ लो ,इसे जीने के खातिर

ये हर रोज़ एक नयी जंग का आगाज़ करती है ……

अर्चना की रचना “सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास “

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