शाम हो गई तुम्हे खोजते माँ तुम कब आओगी
जब आओगी घर तुम खाना तब ही तो मुझे खिलाओगी,
रात भर न सो पाई करती रही तुम्हारा इंतजार
सुबह होते ही बैठ द्वार निगाहें ढूंढ रही तुम्हे लगातार,
पापा बोले बेटा आजा अब माँ न वापिस आएगी
अब कभी भी वह तुम्हे खाना नहीं खिलाएगी,
रूठ गई हम सब से मम्मी ऐसी क्या गलती थी हमारी
छोड़ गई हम सबको मम्मी ऐसी क्या खता थी हमारी,
ढूंढ रही हर पल निगाहे न जाने कब मिल जाओगी
इक आस लिए दिल में कि वापिस जरूर आओगी,
रो रहा है दिल क्या चुप नहीं कराओगी
सोने को तत्पर हूं माँ मैं क्या गोद में नहीं सुलाओगी,
बतादो ना प्लीज मम्मी तुम कब वापिस आओगी।
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मानसी राठौड़d/oरविंद्र सिंह राठौड़