Site icon Saavan

तुम

सुबह का पहला ख़्वाब हो तुम
जैसे कोई मेहकता गुलाब हो तुम
भरी दोपहरी का यौवन, और
शाम का ढलता शबाब हो तुम
कभी मेहक तो कभी मेहखाना हो
जैसे रात में घूंट घूंट चढ़ता शराब हो तुम
अल्फाज़ो की सुंदरता दिखनेवाली
मानो एक प्यार भरी किताब हो तुम
हुस्न की परिभाषा का दीदार
जैसे बरसात में निकलता आफ़ताब हो तुम
सामने होकर भी एक कल्पना सी हो
जो भी हो मगर लाजवाब हो तुम

Exit mobile version