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तेरे असूल थे या बदलते दौर थे

तेरे असूल थे या फिर वो बदलते दौर थे .
मेरे लिए जो और थे गैरों के लिए जो और थे .
जिनको उठाने के लिए मिली मुझे सजा ए मौत ,
आज कहती हैं अदालतें मुद्दे वो काबिल ए गौर थे .
मेरे लिए ही थीं वो क्या मर्यादाओं की दुहाइयाँ ,
जिनके लिए हया छोड़ दी वो कौन से चितचोर थे .
कुछ भी कहो पर”राज़”यह अब हो रहा है आम यूँ ,
कोई दोष न इस तूफां का था घर गरीबों के कमजोर थे .

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