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तज़ुर्बा

‘दिखा दिया ये तज़ुर्बा भी ज़िन्दगी ने हमें,
हैं कितने शख्स ज़हर, और दवा है कितने..
न रोशनी को इल्म, न ही चिरागों को पता,
है कितने बुझने और मंज़ूर-ए-हवा हैं कितने..’

– प्रयाग

मायने :
इल्म – ज्ञान

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