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दहलीज़-ऐ-इश्क़…….

न रखो उम्मीद-ओ-बफा इस दहलीज़-ऐ-इश्क़ पर साहिब
लूट जाते है दिल अक्सर, चाहत के इस बाजार में………………………!!

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