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देखिए आज ज़माना भी नहीं अच्छा है

देखिए आज ज़माना भी नहीं अच्छा है
इस तरह घाव दिखाना भी नहीं अच्छा है

हम खतावार नहीं खता फिर भी मानी
दिल बिना बात दुखाना भी नहीं अच्छा है

दिल घिरा गम के समंदर में जजीरे जैसा
दर्द में और डुबाना भी नहीं अच्छा है

ख्वाब सा जिसको सजाया था कभी आँखों में
उसको नज़रों से गिराना भी नहीं अच्छा है

यूँ मयस्सर नहीं होते ये मेहरबाँ लम्हें
रूठ कर इनको गँवाना भी नहीं अच्छा है

आँखें चुप रह के भी करती हैं बहुत सी बातें
बात दिल की तो छुपाना भी नहीं अच्छा है

हमकदम होगी मसर्रत में ही देखो दुनिया
इसकी खातिर यूँ भुलाना भी नहीं अच्छा है

~ सुमन दुग्गल

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