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दोस्ती

चलो थोडा दिल हल्का करें
कुछ गलतियां माफ़ कर आगे बढें
बरसों लग गए यहाँ तक आने में
इस रिश्ते को यूं ही न ज़ाया करें
कुछ तुम भुला दो , कुछ हम भुला दें

कड़ी धूप में रखा बर्तन ही मज़बूत बन पाता है
उसके बिगड़ जाने का मिटटी को क्यों दोष दें
कुछ तुम भुला दो , कुछ हम भुला दें

यूं अगर दफ़न होना होता ,तो कब के हो गए होते
सिल लिए थे कई ज़ख़्म हम दोनों ने ,
तब जा के ये रिश्ते आगे बढें
कुछ तुम भुला दो , कुछ हम भुला दें

दोस्ती एक घर है जिसमे विचारों के बर्तन खड्केंगे ही
विचारों में है जो दूरियां उनको क्यों आकार दें
कुछ तुम भुला दो , कुछ हम भुला दें

यूं भावनाओं के आवेश में चार बातें निकल जाती हैं
उन बातों का मोल बढ़ा कर
अपनी अनमोल दोस्ती का मोल कम न करें
कुछ तुम भुला दो , कुछ हम भुला दें

अर्चना की रचना “सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास”

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