जब भी प्रेम करने वालों को कोसा गया
मैंने बंद कर लिए अपने कान…
जब भी प्रेमियों पर अत्याचार किये गए
मैंने मूँद लीं अपनी आँखें…!!
जब भी किसी प्रेमी युगल ने देखा मेरी तरफ
उम्मीद से, मैंने उन्हें निराश किया..
अखबारों में आये दिन छपने वालीं
प्रेमियों के कत्ल की खबरें भी
रहीं मेरे दिल पर बेअसर…!!
अपनी कविताओं में प्रेम के क़सीदे
पढ़ने वाले हम….
प्रेम की ताकत का बखान
करने वाले हम…
अपने लेखन में प्रेमियों की हिमायत
करने वाले हम…
अपने जीवन मे क़भी डटकर खड़े नहीं हो
पाते सच्चा प्रेम करने वालों के साथ…!!
वास्तव में प्रेम पर लिखीं गईं हमारी सारी
कविताएं कोशिशें हैं अपनी धिक्कारती हुई
अंतरात्मा की आवाज़ को दबाने की…!!
दरअसल हम बेचारे हैं
निश्चित ही हम दोहरे चरित्र के मारे हैं…!!
©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’