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दो किनारे इक नदिया के

दो किनारे इक नदिया के,
चलें साथ-साथ
पर कभी ना हो उनका मिलन
एक दूजे को देखकर ही,
रहते हैं दोनों प्रसन्न
मिलने की भी ना सोचें कभी,
दो किनारे इक नदिया के
उन दोनों के बीच की,
जल-धारा बहे निरन्तर
जल-धारा रहे निरन्तर
वो पावन जल ना सूखे कभी,
वो निर्मल जल ना सूखे कभी
ये ही चाहत करते रहते,
दो किनारे इक नदिया के..
____✍️गीता

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