धरती तो सचमुच माता है
सारा बोझ इसी पर तो है,
जन्म इसी पर मरण इसी पर
सारा बोझ इसी पर तो है।
हम अपने स्वारथ की खातिर
पाप कर्म में रत रहते हैं,
कभी जरा सा पुण्य कर दिया,
गर्वित मन में रहते हैं।
जरा किसी को दान कर दिया
हम समझे राजा बलि खुद को
धरती सारा दान कर रही
कभी जताती नहीं है खुद को।
अज्ञानी हम इसके तल पर
बुरे कर्म करते रहते हैं,
इसका सीना छलनी करके
अपना हित साधा करते हैं।
मगर धरा का धैर्य जिसे
वेदों ने भी गुणगान किया,
उसी धैर्य की मानव ने
अनदेखी की, अपमान किया।
प्राण बचाने को भोजन
देती है, धरती माता है,
तरह तरह के मधुर फलों को
हमें खिलाती माता है।
अपने तल पर हमें सुलाती,
प्राणवायु से थपकी देती,
हर इच्छा पूरी करती है
धरती सचमुच माता है।