रोशनी कर दो ना
जला दो बल्ब सारे,
देखने हैं मुझे
दिवस में चाँद तारे।
अंधेरे से बहुत
उकता गया हूँ,
मन भरी पीड़ को
लिखता गया हूँ।
अब मुझे जूझना है,
नया स्वर फूँकना है,
बुलंदी है जगानी
नहीं अब टूटना है।
दर्द से आज कह दो
जरा दूरी बना ले,
मुझे अब वेदना को
दूर ही फेंकना हैं।
ठंड में ताप बनकर
स्वयं को सेंकना है।
तप्त मौसम अगर हो
शीत मन सींचना है।
मेरा अरमान हो अब
बुलंदी ही बुलंदी,
और संवेदना को
पास ही पास रखना है।
जिन्दगी की कहानी
सदा चलती रही है,
छोड़ कड़वाहटें सब
मधुर रस स्वाद चखना है।