शीशे का एक महल तुम्हारा,
शीशे का एक महल हमारा.
फिर पत्थर क्यों हाथों में
आओ मिल बैठें , ना घात करें ।
प्रीत भरें बीतें लम्हों को,
नवदीप जलाकर याद करें
– पूनम अग्रवाल
शीशे का एक महल तुम्हारा,
शीशे का एक महल हमारा.
फिर पत्थर क्यों हाथों में
आओ मिल बैठें , ना घात करें ।
प्रीत भरें बीतें लम्हों को,
नवदीप जलाकर याद करें
– पूनम अग्रवाल