नाकाम Praduman Amit 4 years ago हम दो जिस्म एक जान हो कर भी ज़माने को हम कहाँ झुका पाए आज फिर ज़माना मुहब्बत पे भारी पड़ी आखिरी बार भी तुम्हें कहाँ गले लगा पाए।