कहते हैं नारी पानी-सी होती है
जिस रिश्ते में बंधती है
उसी की हो जाती है।
पर प्रज्ञा की यही वेदना है
क्या नारी का कोई अस्तित्व नहीं?
वह पानी-सी है।
उसका कोई स्वरूप नहीं?
वह सदियों से पुरुषों की है
उसकी कोई पहचान नहीं?
नारी तो जगजननी है
हर रूप में वन्दनीय है।
वह हर स्वरूप में सुन्दर है
उस सम कोई परिपूर्ण नहीं।
नारी दुर्गा है, जगजननी है,
जीवन की सुंदर प्रतिमा है।
पुरुषों के जीवन की आधारशिला
नारी के कन्धों पर ही अवस्थिति है।